Sunday, June 27, 2010

पिता- (अनमोल हैं )

पिता का दर्ज़ा है दुनिया में भगवान् के सामान
किन्तु इस बात से है आज भी कई लोग अनजान !

पिता है वो शकशियत- जो हमें इस जहाँ में चलना सिखाते है
जो ठोकर खा कर गिरते है हम कभी, तो फिर से हमें उठना सिखलातें है !
जीवन में गलत क्या है और सही क्या है इसका अंतर बतलातें है
गर कभी बीमार पड़ते है हम, तो नींदें वो अपनी गवातें है!


हम खुश रहे इसके लिए , वो अपना दर्द भूलाकर भी मुस्कुरातें है
जीवन में हर मुश्किल का सामना डट कर करना, एक पिता ही सिखलातें है!

पिता हम बच्चों की जान होतें है,
किसी ने सच ही कहा है की, पिता में ही बसे भगवान् होतें है !

पिता की हर दुआ हम बच्चों के लिए वरदान होती है
उनसे मिली हर सिख एक कीमती हीरे की खान होती है !
तभी तो शायद हर बच्चें के लिए उसके पिता की उपस्थिति अनिवार्य होती हैं !

जीवन में पिता का मान सदैव ऊंचा रहा है, और सदियों रहेगा
अब तक है कहता आया यही ज़माना और युगों तक यही कहेगा !!















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