Thursday, August 12, 2010

प्राथनाये कभी व्यर्थ नहीं जाती















जलती
है जब अग्नि, तो रौशनी बुझाई नहीं जाती,
बिना मिटटी के तो फसल भी उगाई नहीं जाती!

माना कि हर मंजिल आसान नहीं होती,
हर कोयले के अन्दर छुपी हीरे कि खान नहीं होती!

हर मशाल को रौशनी, करने के लिये जलना ही पड़ता है,
अपनी हस्ती को मिटा कर, दूसरो कि दुनिया उजागर करना ही पड़ता है!

ये ज़िन्दगी एक जंग का मैदान है,
यहाँ हर जीत को हासिल करने के लिये, परिश्रम करना ही पड़ता है!

परिश्रम करने के बाद भी मंजिल कब मिले कुछ कह नहीं सकते,
पर बस इंतज़ार के सहारे भी तो जिंदा रह नहीं सकते!

खुद पर यकीन कर के ही हम चल पड़े है आगे,
हम नहीं वो इंसा जो ,मुश्किलों से भागे,
नहीं इतने कमज़ोर हमारे विश्वास के धागे!

जो सच्ची है मेहनत तो, एक एक दिन जग में मिल जायेगी ख्याति,
किसी ने ठीक ही कहा है कि, सच्ची प्राथनाये कभी व्यर्थ नहीं जाती !!

3 comments:

  1. NEELAM जी ,बहुत सुन्दर और सशक्त रचना है ...अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए ,,,गागर में सागर की तरह है .....आपकी इस प्रेरणादायक रचना के लिए बधाई ...ऐसे ही लिखते रहे / आपकी सभी रचनाये कुछ ना कुछ सन्देश देते हुए है ....जो आपके ब्लॉग के शीर्षक ko सार्थक करती hai .......आपकी अगली पोस्ट के इन्तजार में ..!!! धन्यवाद !!!
    जितना गाओ घिंसता जाये जीवन का धुंधला संगीत।

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  2. परिश्रम करने के बाद भी मंजिल कब मिले कुछ कह नहीं सकते,
    पर बस इंतज़ार के सहारे भी तो जिंदा रह नहीं सकते!


    love this stanga, very nice. U are truely a blessed writer.

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