Friday, March 4, 2011

पहला कदम




















ये
कैसी है विडम्बना, ये कैसी है मजबूरी,
हर एक इंसान कि ज़िन्दगी आज लगती है क्यूँ अधूरी!

आँखों में सपने हैं, कोशिशे भी है पूरी,
किन्तु
अभी भी मंजिलों को पाने में काफी है दूरी!

आज इंसा चाहता हैं कुछ और, मगर हो जाता है कुछ और,
सपने देखता है कुछ ओर, हकीकत मिलती है कुछ और!

हर एक लगा हैं अपनी मंजिल को पाने में,
जहाँ
में अपने आप को कुछ ख़ास बनाने में!
किन्तु विडम्बना है बड़ी, कि बहुत समय लग जाता हैं जीवन में पहला कदम उठाने में!

सोच समझ कर उठाये क़दम जीवन में हमेशा आगे बढाते हैं ,
कभी
सफलता तो कभी असफलता, जीवन में दे जाते हैं!
आने
वाले समय का सामना करने के लिये हमे, एक परिपक्व इंसान बनाते हैं!

जीवन में नेक कदम उठाने से पहले, कभी नहीं घबराना चाहिये,
मुश्किलें चाहे कितनी ही बड़ी क्यूँ हो, आपका होंसला कभी नहीं डगमगाना चाहिए,
मंजिलें खुद पीछे आएँगी आपके, आपको सिर्फ अपने होंसलो के साथ आगे बढते जाना चाहिए!

2 comments:

  1. नेक विचार और उत्तम वर्णन नीलम जी|

    जीवन में समय और भी आयेगा, आदमी जब अपना निशां छोड़ जायेगा|
    आज कुछ संघर्ष करें और अच्छा कर जायें, आने वाले समय के लिए एक भेंट छोड जायें.

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  2. आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें. यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे ....
    भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
    डंके की चोट पर

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