My
Small Poem: विश्वास का दिया
वक़्त
के कोरे कागज़ पर
दिन नीकलते चले गए,
बचपन
से बड़े होने तक
का सबब लिखते चले
गए.
एक पल को बैठे
तो सोचा ये सोचु,
आज पा लिया सब
कुछ हमने या फिर
सब कुछ खोते चले
गए !
पाया
भी खोया भी, इस
छोटे से जीवन में,
सजाया
भी हटाया भी सपनो को
त्रिभुवन में!
कुछ
सपने सच हो गए,
कुछ आज भी सपनो
में ज़िंदा हैं,
सच हो जाएंगे ये
भी एक दिन, क्यूंकि
आस पे दुनिया ज़िंदा
हैं!
गर गौर से देखा
जाए तो, अपना मन
भी एक परिंदा हैं,
नहीं
रहता स्थिर ये कभी, हर
पल ये घूमा करता
हैं !
मन हो या अपना
जीवन हो, दोनों ही
निरंतर चलते हैं,
देते
हैं संदेषा चलने का, जीवन
मैं आगे बढ़ते रहने
का ,
रुकने
का अब कोई काम
नहीं, आगे हमको बढ़ते
चलना हैं,
हो जाएंगे सपने सारे सच,
बस इस विश्वास का
दिया जला कर रखना
हैं .