Friday, October 22, 2010

विश्वास से भरा एक नन्हा पौधा...........


घना था अँधेरा, जंगल बहुत बड़ा था, 
कहीं किसी कौने में, एक अंकुर फूट रहा था, 

था आँधियों का कहर भी और कई मर्तबा धुप का असर भी कड़ा था, 
फिर भी अपने वजूद को बचाने में, एक अंकुर जी जान से लगा था! 

अंकुर से नन्हे पौधे तक का सफ़र बहुत कठिनाइयों से भरा था, 
किन्तु उस अंकुर के अन्दर आत्मविश्वास गज़ब का भरा था! 

नहीं झुका वो समक्ष आँधियों के,धुप के आगे भी अटल वो खड़ा था, 
क्यूंकि, उस अंकुर के अन्दर मरने के भय से ज्यादा, जीने का उत्साह भरा था!

अपनी एक पहचान बनाने को जंगल में सदियों से वो लड़ा था, 
गुमनामियों में रहते हुए भी मिलेगी पहचान-- हमेशा ही वो इसी आस से आगे बढ़ा था

अस्तित्व तो कब का मिट गया होता, उस नन्हे से पौधे का, 
किन्तु जंगल में भी वो अपने, आत्मविश्वास कि शक्ति से अब तलक, 

सभी पौधों के समक्ष अपना वजूद शान से जगमगाए खड़ा था , 
क्यूंकि उस पौधे का विश्वास किसी भी डर से कई- कई गुना बड़ा था!


3 comments:

  1. "ला-जवाब" जबर्दस्त!!
    शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

    ReplyDelete
  2. आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं

    ReplyDelete