Friday, June 25, 2010

नारी तू कमज़ोर नहीं

नारी तू कमज़ोर नहीं
क्यूँ तुझको समझे ये दुनिया असहाय सारी!

क्यूँ तुझको अपना ही डर,अन्दर ही अन्दर सताये
क्यूँ तू अधर्मियों और अत्याचारियों के समक्ष अपना शीश झुकाये!

क्यूँ नहीं तू अपनी तकदीर अपने हाथों खुद बनाए
क्यूँ तू अपने आपको इस दुनिया में मजबूर और निर्बल बताये !

एक बात स्वीकार ले आज की नारी
छोड़ सीता का दामन ,आज बन जा तू दुर्गा की अवतारी !

काट दे उस हाथ को जो तेरे गिरेबान पर उठे
भस्म कर दे उस इंसान को जिसकी बुरी नजर तुझ पर पड़े
मार दे ऐसे पापियों को जो समाज को दूषित करे!

आज हाथों में चूड़ियों का नहीं तू तलवार का श्रृंगार कर

अपने जीवन की मुश्किलो का सामना अपनी हिम्मत से हर बार कर

रह तू मरियादा में किन्तु न अपना तिरस्कार स्वीकार कर

हक़ अपना छीन ले आज गर मिलता नहीं -२

मत बन आज बलिदान की मूर्ति क्यूंकि, आज बलिदान से कुछ मिलता नहीं!

दुर्गा रूप में आज तू स्वयं को आत्मसात कर

आज हो या कल

तू हर युग में जुल्मी और अत्याचारियों का अपनी शक्तियों से संघार कर!

नारी तू कमज़ोर नहीं

आज इसे स्वीकार कर-२ !!!!



1 comment:

  1. very nice keep doing the good work. runing out of time will comment in detail later. U nevr stop keep posting these wonderful poems.

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