Tuesday, June 29, 2010

{प्रेरणा एक नन्हा दीपक }

सामने कोहरा घना है , और मैं सूरज नहीं हूँ
क्या इसी अहसास में जियूँ ?

या जैसा भी हूँ, नन्हा सा एक दिया तो हूँ
क्यूँ इस आस में जियूँ !

हर आने वाला क्षण -मुझे यही कहता है
अरे भाई तुम सूरज तो नहीं!!!!!

और में कहता हूँ ,सूरज ना सही,एक नन्हा दिया तो हूँ ,
मुझमे स्वयं जलने की, कुछ करने की शक्ति तो है,
क्या हुआ गर मै , पुरे जग को प्रकाशीत ना कर सका,
किन्तु रौशनी फैलाने की उत्कंठ चाहत तो है !

कुछ करने की इच्छा मेरे जीवन जीने का उद्देश्य है,
छोटा ही सही , किन्तु कुछ तो मुझमे विशेष है!

मेरा आत्मविशवास मुझे, ये चेतना अक्सर दे जाता है,
समय चाहे कैसा भी हो-अच्छा या बुरा, एक दिन बदल जाता है !

पाता है वही मंजिल जग में ,
जिसका द्रीड-निशचय कभी नहीं डगमगाता है ,

फिर वो ,चाहे एक नन्हा दीपक हो या विशाल सूरज ये सवाल,
सवाल नहीं रह जाता है ,

क्यूंकि सदियों से ये जग उसी को अपनाता है,
जो अपनी राह इस दुनिया में खुद खुद बनाता है !

1 comment:

  1. Very good Yaar i must say u rocks man. Too good keep duing the good work.

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