Tuesday, June 8, 2010

लक्ष्य और जिन्दगी

धनुष से जो छूटता है बाण, कब राह में ठहरता है
देखते ही देखते वो एक दिन, लक्ष्य का ही बेध करता है!

लक्ष्य प्रेरित बाण हूँ में, ठहरने का काम कैसा
लक्ष्य तक पहुंचे बिना, मैं करूँ विश्राम कैसा?

है जिन्दगी अब एक चुनौती, जिसको मुझे है जीतना
फिर सुख मिले या दुःख मिले, परवाह मुझको है नहीं !

परवाह है गर तो, बस टूटे नहीं हिम्मत मेरी
हर मोड़ पर ये जिन्दगी, देती है एक चुनौती नई!

आगे बढूँ ,पीछे हटूँ, कई बार होती है मुश्किल बड़ी
क्यूंकि दुनिया है बड़ी, और मैं इस दुनिया के बीच अकेली हूँ खड़ी!

1 comment:

  1. you are not alone i am always there for u.Nice lakshya & Ban good, must say u know how to use right words at write time. All the best for ur future & wish you'll achieve ur goals of life without and obstacles.

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